दोस्तों आज के इस पोस्ट में जानेंगे कि -आखिर चाँद धरती से कितना दूर है? साथ में चन्द्रमा के बारे में अन्य जानकारी।चाँद (Chaand) हमारी सौर मंडल का एक ग्रह (planet) है। यह सौर मंडल का दूसरा सबसे बड़ा ग्रह है चन्द्रमा सूर्य से छोटा है। पृथ्वी पर खड़े होकर देखने पर चन्द्रमा सूर्य से थोड़ा ही छोटा लगता है, परन्तु यह बहुत छोटा है।यह पृथ्वी के चारों ओर घूमता हुआ सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाता है।
खगोलशास्त्रियों की बात कहें तो वे अन्य ग्रहों की अपेक्षा चन्द्रमा की अधिक जानकारी प्राप्त की है। चन्द्रमा दूर से देखने पर जितना सुन्दर लगता है, लेकिन वास्तव में वह उतना सुन्दर नहीं है । चन्द्रमा पर न तो हमारी पृथ्वी जैसी जमीन है और न ही वहाँ मनुष्य रहते हैं। वहाँ पानी भी नहीं है। जिस प्रकार हरे-भरे खेत हमारी दुनिया में दिखाई देते हैं, उस तरह के पानी के हरे-भरे खेत चन्द्रमा में नहीं हैं।
चांद पर जाने वाली पहली महिला कौन थी ?
दोस्तों जानकारी के मुताबिक अभी तक कोई भी महिला चाँद पर नहीं गयी है ?
आखिर चाँद धरती से कितना दूर है? आईये जानते है ?
चांद से पृथ्वी की दूरी लगभग 384402 किलोमीटर यानी लगभग 238857 मील है।
कौन सा जानवर सबसे पहले चांद पर उतरा?
विद्यार्थी हो या आम इन्सान के मन में एक प्रश्न जिज्ञासावश अवश्य आता है की -कौन सा जानवर सबसे पहले चांद पर उतरा होगा ?चांद पर जाने वाला पहला इंसानका नाम नील आर्मस्ट्रांग था। हालांकि, चांद पर जाने वाला पहला जीव एक कुतिया था। उस कुतिया का नाम लाइका था।
चन्द्र /सूर्य ग्रहण किसे कहते हैं ?
जब पृथ्वी, चन्द्रमा और सूर्य घूमते हुए एक सीध में आ जाते हैं और चन्द्रमा बीच में होता है तो सूर्य फीका पड़ जाता है। जब चन्द्रमा और सूर्य के बीच में पृथ्वी आ जाती है तो चन्द्रमा फीका दिखाई देता है। इसी से चन्द्र और सूर्य ग्रहण होते हैं।
चन्द्रमा अमावस्या के दो दिन बाद पश्चिम-दिशा में नारंगी की फाँक की तरह आकाश में दिखाई देता है। इसे दूज का चाँद कहते हैं। चन्द्रमा पश्चिम से पूर्व की ओर आकाश में दिखाई देता है। ऐसा पृथ्वी के घूमने के कारण होता है। वास्तव में चन्द्रमा पश्चिम से पूर्व की ओर नहीं, पूर्व से पश्चिम की ओर चलता है। किसी चमकदार तारे से मिलकर देखें तो यह बात साफ हो जाती है।
चन्द्रमा का जो भाग दिखाई नहीं देता, उसके ऊपर एक हल्की गोल रेखा दिखाई देती है। चन्द्रमा का न चमकने वाला भाग पन्द्रह दिन तक कम होता जाता है और पूर्णमासी को वह पूरा होकर फिर घटने लगता है। अमावस्या और पूर्णमासी को पृथ्वी, चन्द्रमा और सूर्य एक सीध में आ जाते हैं। जब चन्द्रमा सूर्य के सामने आ जाता है तो सूर्य ग्रहण होता है।
जब पूरा सूर्य ग्रहण होता है तो दिन में अंधेरा हो जाता है। दिन में हमें रात-सी दिखाई देने लगती है। यह ग्रहण सात मिनट चालीस सैकेण्ड से अधिक समय का नहीं होता। यह तीन वर्ष में केवल एक ही बार होता है।
खगोलशास्त्री ग्रहण पड़ने वाले स्थान को पहले से जान लेते हैं। चन्द्रमा सूर्य से छोटा है इसलिए वह सूर्य के बीच में आ जाता है। ग्रहण के समय सूर्य चूड़ी के आकार का दिखाई देने लगता है। क्योंकि उसके बीच का भाग चन्द्रमा से ढ़क जाता है।
चन्द्रमा एक हजार मील प्रति घण्टे की चाल से चलता है। सूर्य की अपेक्षा चन्द्रमा पृथ्वी के निकट है। यह पृथ्वी के साथ सूर्य का चक्कर लगाता है। जब सूर्य और चन्द्रमा के बीच में पृथ्वी आ जाती है तो चन्द्र ग्रहण होता है। चन्द्र ग्रहण के समय चन्द्रमा का रंग लाल हो जाता है।
खगोलशास्त्री ग्रहण पड़ने वाले स्थान को पहले से जान लेते हैं। चन्द्रमा सूर्य से छोटा है इसलिए वह सूर्य के बीच में आ जाता है। ग्रहण के समय सूर्य चूड़ी के आकार का दिखाई देने लगता है। क्योंकि उसके बीच का भाग चन्द्रमा से ढ़क जाता है।
पुराने लोगों में चन्द्रमा के विषय में विभिन्न कल्पनाएँ की थीं। इसके अन्दर के काले धब्बों को, कुछ कहते थे कि यह चन्द्रमा की माँ चर्खा कात रहीं है और दूसरे कहते थे कि यह हिरण दौड़ रहा है। खगोलशास्त्रियों ने इन्हें झूठा साबित कर दिया है। उन्होंने इन धब्बों को दूरबीन से बहुत ही निकट से देखा । चन्द्रमा के धरातल पर पथरीले पर्वत, बड़ी-बड़ी सूखी झीले, ज्वालामुखी और मैदान हैं। खगोलशास्त्रियों को वहाँ समुद्र दिखाई नहीं दिया।
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