moral stories in hindi top 10 moral stories in hindi पंचतंत्र की कहानियां

हेल्लो दोस्तों easyanswer.in में आपका स्वागत है। जिन्दगी में हमें कभी कभार ऐसे परिस्थिति से गुजरना पड़ता है जहाँ से हमें कुछ सीख जरुर मिल जाती है।आज हम moral stories in hindi top 10 moral stories in hindi पंचतंत्र की कहानियां ,टॉपिक पर पोस्ट शेयर करेंगे ।

हमारी जिंदगी में कहानियों का बहुत महत्व होता है क्योंकि नैतिक कहानियां हमें जिंदगी में सही काम करते हुए आगे बढ़ते रहने की सीख देती है ।

1.बंदर का कलेजा

जब बंदर ने मगर की पोल खोल दी तो मगर बहुत शर्मिन्दा हुआ। लेकिन बंदर ने मन-ही-मन मगर को पाठ पढ़ाने की बात तय कर ली थी।moral stories in hindi top 10 moral stories in hindi पंचतंत्र की कहानियां

कुछ दिनों बाद दोनों में फिर दोस्ती हो गयी । बंदर मीठे-मीठे जामुन टपकाने लगा और मगर उन्हें खुद भी खाता और अपनी मगरनी को खिलाने के लिये भी ले जाता ।

एक दिन बंदर बोला, “मगर भाई, मैं शहर जाना चाहता हूं।”

“क्यों, ऐसी क्या मुसीबत आ गयी?” मगर ने पेड़ से

नीचे बालू पर लेटे-लेटे ही पूछा ।

“बात यह है कि तुम्हें मैं दिल से प्यार करता हूं। उस दिन मैंने भाभी को अपना कलेजा न खिलाकर अच्छा नहीं किया। मुझे आज भी इसका पछतावा है। मैं चाहता हूं कि इस कर्ज से मुक्त हो जाऊं ।” यह सुनकर मगर हंसा और बोला, “अरे, छोड़ो

भी इन बातों को। तुम तो घर में ही रहो। शहर जाकर क्या करोगे?”

“नहीं भाई, नया साल आ गया है। बाजारों में तरह-तरह की मिठाइयां बनी होंगी। मैं जाकर उन्हें खाऊंगा तो मेरा कलेजा खूब मीठा हो जायेगा । तब उसे अगर भाभी खायेंगी तो बहुत-बहुत खुश होंगी । अभी तो उन्होंने सिर्फ जामुन का मजा चखा है, तब गुलाबजामुन का मजा आयेगा ।”

बंदर ने देखा कि मगर के मुंह से लार टपक रही थी। लेकिन उसने करवट लेते हुये मुंह पोंछा और बोला, “ठीक है, अगर जाना है तो जाओ । पर लौटना जल्दी ।”

और अगले दिन बंदर चला गया। मगर और मगरनी बड़े खुश थे। उनमें पहले तो झगड़ा हुआ कि बंदर का कलेजा इस बार मगर खायेगा और मगरनी कहती कि बंदर ने उसे देने के लिये कहा है । उस दिन तालाब में पानी खूब उछला क्योंकि मगर और मगरनी- दोनों में झगड़ा हुआ था। तालाब की मछलियां बेचारी दिल थामे बैठी रहीं। अंत में आधा-आधा कलेजा बांटकर खाने का समझौता हो गया।

उधर बंदर शहर में पहुंचा। उसने पहले खूब

मिठाइयां खायीं फिर मगर-मगरनी को पाठ पढ़ाने का उपाय सोचने लगा। वह बाजार में घूम रहा था कि एक दुकान पर उसे दो कलेजे टंगे दिखे। बंदर मन-ही-मन खुश होकर उन्हें वहां से चुराने की ताक-झांक करने लगा।

दोपहर में दुकान का मालिक थोड़ी झपकी लेने लगा। इस बीच बंदर ने दोनों कलेजे उड़ा दिये। उन्हें लेकर वह एक मकान की छत पर आकर देखने-परखने लगा। दोनों नकली थे । प्लास्टिक के बने हुये थे । उसने उन्हें थोड़ा-सा चबाया तो काफी मेहनत लगी
और कुछ स्वाद भी न आया। बंदर बहुत खुश हुआ। अब वह एक पटाखे की दुकान में आया। उसने वहां से गोल-गोल पटाखों का पैकेट लिया। उनपटाखों को उसने दोनों कलेजों में भर दिया।

शाम होते-होते बंदर जंगल को लौट आया। सवेरे-सवेरे मगर बंदर को देखने पहुंचा ।

“अरे, आओ भाई, मैं तो रात से तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं।” बंदर ने कहा, “यह देखो !” और उसने एक कलेजा दिखाया। मगर बहुत-बहुत खुश हुआ।

बंदर बोला, “भई, आज की दुनिया का निराला ठाठ है। अब तो दिल बदल लेते हैं। मैंने भी सोचा कि क्यों न अपने दोस्त के लिये अपना दिल बदलवा लूं। जिन्दा रहूंगा तो और सेवा कर लूंगा । इसलिये जब डॉक्टरों से दिल बदलवाये तो मेरे मेट में दो दिल निकले।” और उसने मगर को दूसरा भी दिखा दिया। फिर बोला, “अब ये दोनों तुम ले जाओ । एक तुम्हारे लिये है, एक भाभी के लिये ।”

“पर भैया, तुम जिन्दा कैसे हो?” मगर ने पूछा।
“मैंने तो नकली दिल लगवा लिया है।” कहकर बंदर हंसा और फिर नीचे उतरकर मगर को दोनों कलेजे दे गया ।

मगर कलेजे लेकर बड़ी तेजी से पानी के अंदर गायब हो गया। पर थोड़ी देर बाद पानी के अंदर बड़ी हलचल हुई। खूब पटाखे चले और पानी की लहरें उछलीं। बंदर पेड़ पर बैठा सारा तमाशा देखता रहा ।

कुछ देर बाद मगर और मगरनी की लाशें तालाब में तैरने लगीं। बंदर ने मन-ही-मन सोचा कि चलो, अब लोग इस तालाब के किनारे आने में डरेंगे नहीं। मगर-मगरनी का आतंक खत्म हो गया ।

2.सीख न दूंगा बानरा

बंदर ने बया पक्षी का घोंसला नोंचकर फेंक दिया बेचारा बया बेघरबार का होकर, एक पेड़ के ठूंठ पर उदास होकर बैठ गया। उस समय बादल छंटने लगे थे। पानी थम गया था । अन्य पक्षी अपने-अपने
घोंसलों से बाहर निकल आये। उन्हें बया पक्षी की हालत पर बड़ी दया आयी। साथ ही उस अनाड़ी बंदर पर क्रोध भी आया।

एक पक्षी ने सहानुभूति दिखाते हुये कहा- “देखो तो कैसा अनाड़ी बंदर है! बारिश के इन दिनों में बेचारे को बे-घर का कर दिया।”यह तो दुख की बात है।

” और क्या बया ने कोई बुरी बात को कही न थी।” दूसरे पक्षी ने पहले की हां में हां मिलाते हुये कहा। वह बोला- “बया ने यही तो कहा था न, तुम भी मेरे जैसा घर बना लो या किसी गुफा-कंदरा में जा छिपो। इस तरह पानी में भीगने से क्या लाभ?”

“कोई बात नहीं, प्यारे! तुम तो हम पक्षियों में इंजीनियर माने जाते हो। बंदर ने एक घर उजाड़ा तो क्या हुआ? तुम वैसे सौ घर बना लोगे। पर हां, बंदर को उसके किये का मजा जरूर चखाओ।”

घोंसला बनाने में कुशल बया पक्षी उसी दिन से फिर अपना घोंसला बनाने में जुट गया। कुछ ही दिनों में उसका घोंसला तैयार हो गया। लेकिन दुर्भाग्य! एक दिन न जाने कहां से वही बंदर फिर घूमता-फिरता उधर आ पहुंचा। उसने बया का घोंसला देखा तो एकदम आग-बबूला हो उठा। दांत
किटकिटाकर बोला- “तूने फिर अपना घर बना लिया ! ठहर, तुझे मजा चखाता हूं।” कहकर वह बया के घोंसले की ओर लपका। जान खतरे में देख, बया पक्षी घोंसला छोड़कर उड़ा और दूर एक पेड़ पर जा बैठा। लेकिन बंदर भला क्यों मानने लगा। वह सीधा घोंसले के पास गया और उसे नोंचकर फेंक दिया ।

बया पक्षी ने अपना घोंसला फिर उजड़ते देखा तो मन-ही-मन बहुत दुखी हुआ । उसने निश्चय किया कि अब वह कहीं और अपना घोंसला बनायेगा । इस दुष्ट बंदर से छुटकारा पाने का यही उपाय हो सकता है।

उड़ते-उड़ते बया पक्षी एक शहर में पहुंचा। वहां एक बस्ती थीं-मजदूरों की। कोई दस झोंपड़ियां रही होंगी। बया पक्षी पास के एक पेड़ पर बैठा था । उसने देखा कि खाकी वर्दी पहने एक आदमी आया और उसने झोंपड़ी के मालिक से कुछ बातें कीं । झोंपड़ी का मालिक उससे हाथ जोड़ता, पर वह मानने से इनकार करता रहा। देखते-देखते उस खाकी वर्दी वाले आदमी ने झोंपड़ी उखाड़कर फेंक दी।

थोड़ी देर बाद खाकी वर्दी वाला आदमी चला
गया। उसके जाते ही कई लोग अपनी-अपनी झोंपड़ी से निकल आये और उस आदमी को समझाने-बुझाने लगे। बया पक्षी को लगा कि खाकी वर्दी वाला आदमी भी बंदर की ही तरह है, जिससे शायद सभी डरते हैं।

अपनी उजड़ी हुई झोंपड़ी देखकर वह आदमी रो रहा था और उसके पड़ोसी समझा रहे थे- “तुम्हें कितनी बार कहा कि उसे कुछ दे दो तो मान जायेगा। आज उसने झोंपड़ी तोड़ दी न !”

“लेकिन भाई, यह तो अंधेर है । जब हमें म्युनिसिपेलिटी ने यहां झोंपड़ी बनाने की जगह दी है,
तो फिर इस जमादार को हम पर रोब जमाने क्या अधिकार है?” दूसरे पड़ोसी ने जरा तैश के साथ कहा। का

“कहते तो ठीक हो, पर सुनता कौन है ! हर आदमी इस ताक में रहता है कि कैसे किसी से पैसे ऐंठ लिये जायें ! आजकल रिश्वत का बोलबाला है। यह ऐसा पंछी है, जिसकी सहायता से मजे ही मजे किये जा सकते हैं?” पहले व्यक्ति ने कुछ व्यंग्य से कहा। चार

“सो तो न कहो।” तीसरा पड़ोसी बोला- “जब सेर को सवा सेर मिल जाता है तो अच्छे-अच्छे लोगों के दिमाग ठिकाने लग जाते हैं। बस, हिम्मत होनी चाहिये।”

अब उस झोंपड़ी का मालिक बोला- “हां, अब तो इसे सबक सिखना ही पड़ेगा।”

बया पक्षी ने झोंपड़ी के मालिक की बात सुनी, तो उसे अपने साथी की बात याद आ गयी- “प्यारे, बंदर को उसके किये का मजा जरूर चखाना ।” बया पक्षी ने मन-ही-मन निश्चय किया कि वह बंदर से अवश्य बदला लेगा। वह छोटा है तो क्या, सच्चाई की राह पर चलता है, वह कभी नहीं हारता ।
अगले दिन बया फिर उसी पेड़ पर आ बैठा। उसने देखा कि झोंपड़ी का मालिक पूरी मेहनत से अपनी झोंपड़ी तैयार करने में लगा हुआ है। शाम तक झोंपड़ी बनकर तैयार हो गयी। अब बया को इंतजार था उस खाकी वर्दी वाले जमादार का न जाने क्यों बया की आंखों के सामने उसी बंदर का चेहरा घूम जाता और फिर अपने घोंसले के उड़ते हुये तिनकों की याद करके वह रो पड़ता। कितनी मेहनत और सुन्दर ढंग से बनाता है वह अपना घोंसला । उसके मन में झोंपड़ी के मालिक के प्रति सहानुभूति थी ।

उस रात बया उसी पेड़ पर बैठा रहा । सवेरे कोई आठ बजे उसे रिश्वती जमादार आता दिखाई दिया। बया का दिल कांप गया। लेकिन दूसरे ही क्षण उसे याद हो आयी बदला लेने की बात । इसलिये वह बड़ी उत्सुकता से प्रतीक्षा करने लगा कि आगे क्या होता है!

जमादार आते ही गुर्राया – “तेरी यह मजाल ! तूने फिर झोंपड़ी बना ली।”

उसकी आवाज सुनते ही झोंपड़ी का मालिक जल्दी से बाहर निकल आया । उसने हाथ जोड़कर
कहा- “हुजूर, गरीब आदमी हूं। मुझ पर दया कीजिये।”

“दया और तुम पर!” जमादार हंसा – “अच्छा,

आज देता है कुछ, या फिर झोंपड़ी उखाड़ फेंकूं?”

“नहीं-नहीं, मालिक, ऐसा न करें।” और फिर उसने जेब से पांच रुपये का एक नोट निकालकर जमादार के हाथ में थमा दिया। जमादार खुश हो गया। उसने नोट जेब में रखा पर जैसे ही मुड़ा कि पीछे से आवाज आयी – “जमादार ! जैसे हो वैसे ही खड़े रहो।”
जमादार चौंका। उसने मुड़कर देखा तो उसके चेहरे का रंग उड़ गया। इंस्पेक्टर उसकी ओर आगे बढ़ते आ रहे थे और पीछे से म्युनिसिपल कमिश्नर । उन्होंने पांच रुपये के नोट पर अपने हस्ताक्षर किये थे और वही नोट उसे दिया गया था। जमादार रंगे हाथों रिश्वत लेते पकड़ा गया था। आस-पास की झोंपड़ियों के लोग भी निकल आये और उन सभी ने जमादार के अत्याचार की कहानी सुनायी ।

बया पक्षी मन-ही-मन बहुत खुश हुआ। अब उसका साहस बढ़ चुका था । उसने बंदर से बदला लेने तथा उसे सबक सिखाने का निश्चय किया। वह फिर उसी जंगल में आया और उसी पेड़ पर अपना घोंसला बनाने लगा।

इस बीच उस बंदर का उत्पाद बहुत बढ़ चुका था। आस-पास के पक्षियों ने बया को फिर से घोंसला बनाते देखा तो लगे समझाने- “मूर्ख हुये हो क्या ? दो बार घर उजड़ चुका, फिर भी अकल नहीं आयी ! आजकल तो उस बंदर को बया के घोंसले से ही चिढ़ हो गयी है। जिस पेड़ पर घोंसला देखता है, उसे तुरंत नोंचकर फेंक देता है। जंगल के तमाम बया पक्षी उसकी इस आदत से बहुत परेशान हैं।”
लेकिन वह क्या पक्षी जरा भी नहीं घबराया। उसने कहा- “ठीक है, इस बार जब वह मेरा घोसला नौचने आयेगा, तब बताऊंगा।”

कई दिन की मेहनत के बाद घोंसला बनकर तैयार हुआ। अब क्या पक्षी को चिंता हुई कि अगर कल सुबह ही वह बंदर आ धमका तो क्या करना होगा। सारी रात वह इसी उधेड़बुन में रहा। आखिर एक उपाय समझ में आ गया। वह सूर्योदय से पहले ही उड़ा और बगीचे में पहुंचा। उसने एक अमरूद तोड़ा। बड़ा-सा पका हुआ अमरूद देखकर भला किसके मुंह में पानी न आ जाये! किंतु बया ने उसे खाया नहीं, बल्कि डंठल के पास उसने बड़ी चतुराई से एक बड़ा-सा छेद किया, फिर एक पकी हुई लाल मिर्च उसके अंदर दबा दी। ऊपर से अमरूद का गूदा भर दिया और लेकर वापस अपने घोंसले में आ गया।

कुछ ही देर में उसके तीन-चार साथी पक्षी उड़ते हुये आये और उन्होंने बताया कि बंदर इधर ही आ रहा है, होशियार हो जाओ। तुम्हें तो पहले ही मना किया था। बया ने कहा- “घबराओ मत सब ठीक हो जायेगा।”
और कुछ ही क्षणों में कूदता-फांदता बंदर उधर आ पहुंचा। बया का घोंसला देखते ही उधर लपका। लेकिन तब तक बया पक्षी चोंच में अमरूद दबाये बाहर निकल आया।

बंदर अभी एक मोटी डाल पर बैठा था। बया उसके पास की दूसरी डाल पर जा बैठा । अमरूद को उसने संभालकर रखा और बंदर से बोला- “आप मुझसे बेकार ही नाराज हैं। यह लीजिये, आज मैं आपके लिये कितना बढ़िया अमरूद लाया हूं। अब मुझ पर दया कीजिये और घोंसले नोंचना बंद कर दीजिये ।”

बंदर ने अमरूद देखा तो मुंह में पानी आ गया।
वह तुरंत अमरूद की ओर लपका और उठाकार खाने लगा। बया पक्षी उड़कर अपने साथियों के पास आ बैठा। वे पास के पेड़ पर बैठे तमाशा देख रहे थे।

बया ने उन्हें बताया कि उसने अमरूद के अंदर लाल मिर्च छिपा दी है। बंदर जल्दी-जल्दी अमरूद खा रहा था। अचानक वह उछल पड़ा जोर-जोर से चीं-चीं करता हुआ इधर-उधर भागने लगा। मिर्च ने अपना काम कर दिखाया था । बया और उसके साथी उसे इस तरह उछलते देखकर खूब खुश हुये । बंदर को अब बया पर बेहद क्रोध आ रहा था। वह उसके घोंसले को तोड़ने के लिये दौडा ।

बया ने इस बार एक बहुत ही पतली टहनी पर अपना घोंसला लटकाया था। बंदर क्रोध में कूदता हुआ लपका और जैसे ही घोंसला पकड़ने के लिये झपटा कि टहनी टूट गयी। बंदर धड़ाम से नीचे आ गिरा। वह बुरी तरह लहूलुहान हो गया था और कुछ ही पलों में उसने दम तोड़ दिया । बया ने चैन की सांस ली और बोला- “अब कभी बंदर को सीख नहीं दूंगा।”

3.राजा नहीं चाहिये

दमनक गीदड़ ने संजीवक बैल से कहा, “दुनिया में वही सुखी और प्रसन्न रहता है जो अपनी ताकत पर भरोसा करता है, जो किसी के सहारे नहीं जीता है। पहले जंगल का राजा शेर था । हमें उसकी मर्जी से चलना पड़ता था। उसका जूठन खाना पड़ता था। लेकिन अब जंगलों में शेर का राज नहीं रहा । सब जानवरों को आजाद होकर रहने-घूमने का अधिकार है। इसलिये हम सबको सोचना चाहिये कि मिलकर रहें। राजा-रानी का चक्कर छोड़ दें, वरना हमारा भी वही हाल होगा जो उस तालाब के जलचरों का हुआ था।”

“क्या हुआ था उन्हें” संजीवक ने पूछा। तब दमनक ने उन जलचरों की कथा इस प्रकार सुनायी-

“दक्षिण देश में महिलारोप्य नामक नगर था । नगर के पास एक तालाब था। उसमें मछलियां, केकड़े, कछुये, मगरमच्छ आदि सभी रहते थे वे सुना करते थे। कि इस नगर के राजा ने लोगों को बहुत सुख दिया। इसलिये सबने मगरमच्छ को अपना राजा बना लिया। कई बरस बीत गये। दुनिया बदल गयी। लेकिन तालाब का शासन न बदला। वहां मगरमच्छ ही अपना राज चला रहा था ।

एक दिन मगरमच्छ तालाब से बाहर रेत पर लेटा हुआ धूप सेंक रहा था। एक शिकारी ने उसे देख लिया। बंदूक की तीन गोलियां धांय धांय कर छूटीं और मगरमच्छ वहीं मर गया ।

तालाब के जीवों में यह खबर बिजली की तरह फैल गयी कि मगर राजा की मृत्यु हो गयी। अब वे सब चिंचित हो उठे कि तालाब का राजा किसे बनायें । वहां एक पुराना सांप रहता था। सबकी सलाह से उसे राजा बनाया गया। सांप बहुत खुश हुआ। हर रोज
आठ-दस मेंढक खा जाता और मजे से बिल में आराम करता। धीरे-धीरे मेंढ़कों की संख्या कम होने लगी । मेंढकों ने शोर मचाया, “बचाओ ! बचाओ !! यह तो हमें खा जायेगा।” अगले ही दिन कुछ केकड़ों ने मिलकर उस सांप का काम तमाम कर दिया।

अब एक बगुला आया। उसका संत स्वभाव देखकर सभी बहुत खुश हुये । उसे राजा बना दिया गया। बगुला जी भरकर मछलियां खाने लगा। मछलियां घबरा उठीं। अच्छा हुआ कि एक बहेलिये ने तीर से उस बगुले से सबकी जान बचा ली।

फिर एक गीदड़ आया । सबने सोचा- “बहुत वीर जानवर है। शेर का मंत्री कहलाता है । यही हमारा राजा बन सकता है।’ गीदड़ भी राजा बनकर खुश हुआ। भरपेट केकड़े खाने लगा। बड़ी मुश्किल से उससे जान छूटी।

आखिर तालाब के जीव फिर परेशान हो उठे। सोचने लगे – “क्या राजा का मतलब यही है कि हम छोटे-छोटे लोगों को वह खा जाये”

कुछ दिनों बाद एक हंस आया। उसने कहा, ‘हां, राजा अपने सुख के लिये दूसरे का सुख छीन लेता है। वह अपने को सबसे ज्यादा ताकत वाला मानता है। इसलिये लोग उसे पसंद नहीं करते। तुम तो व्यर्थ ही परेशान हो। मगरमच्छ भी तुम्हें खाता था। सांप, बगुला, गीदड़ ने भी तुम्हें खाया। जो राजा बनेगा भक्षक या शोषक होगा। इसलिये मेरी सलाह मानो तो ‘राजा’ बनाने की बात भूल जाओ। धरती पर भी अब कोई ‘राजा’ नहीं है। लोग खुद अपना शासन चलाते हैं और अपने राजा ‘आप’ हैं।” वह

हंस की ये बात सुनकर तालाब के सभी जीव बहुत खुश हुये थे । वे मिलकर रहने लगे। उन्हें कोई गुलाम नहीं बना सका ।

दमनक ने संजीवक से कहा, “इसलिये हे मित्र, हमें भी ऐसे काम करने चाहिये कि सबको बराबरी से रहने का मौका मिले।”

4.सोने का कड़ा

गीदड़ ने शेर को जब फिर से कटघरे में बंद करवा दिया तो लोभी ब्राह्मण से बोला- “अब खड़े-खड़े क्या देख रहे हो ? चलो, इस दुष्ट को यों ही बंद रहने दो।” और दोनों चले गये।

बेचारा शेर फिर अपने को कोसने लगा कि पहले जरा से मांस के टुकड़े का चक्कर में कटघरे को कैदी बना, अब इस बार मूर्ख गीदड़ की बातों में आकर
एक सुनहरा मौका खो दिया। कितना अच्छा होता, अगर उस आदमी और गीदड़ दोनों को ही चट कर जाता।

शेर अभी कोई नयी चाल सोच ही रहा था कि एक राहगीर फिर उधर से निकला। शेर ने सोचा- चलो, शायद यह भी उसी तरह चक्कर में आकर कटघरा खोल दे। सीधा-सादा दिखने वाला वह राहगीर जैसे ही पिंजड़े के पासा आया कि उसके अंदर जिन्दा शेर देखकर डरकर भागा।

शेर हंसकर बोला- “अरे भाई, डरो मत। मैं तो यह कटघरे में बंद हूं। भला तुम्हें कैसे चोट पहुंचा सकता हूं ! और मैं तो तुमसे दोस्ती करना चाहता हूं। जरा पास तो आओ।”

राहगीर को लगा कि शेर ठीक ही तो कह रहा है। इससे डरने की क्या जरूरत ? उसने देखा कि कटघरे का दरवाजा बिलकुल ठीक से बंद था। वह कटघरे के पास आकर खड़ा हो गया ।

शेर बोला- “भाई, मुझे कुछ बदमाशों ने इस कटघरे में बंद कर दिया है। मैं कई दिनों से भूखा-प्यासा हूं। मुझे अगर बाहर निकाल दो तो बड़ी कृपा होगी। बदले में तुम्हें देने के लिए मेरे पास और तो कुछ नहीं
है, यह सोने का कड़ा अवश्य दे सकता हूं।” राहगीर ने सोने का कड़ा देखा तो खुशी से आंखें चमक उठीं। उसने कहा- “कहते तो ठीक हो, लेकिन क्या पता कि यह चौदह कैरट का है या चौबीस का ?”

“अजी, असली सोने का है। एक आदमी को मारकर खाया था । वही पहने था इसे।” शेर ने शान दिखाते हुए कहा ।

राहगीर का माथा ठनका। वह समझ गया कि वह आदमखोर है। इसका भरोसा नहीं है । अपना काम सिद्ध करने के लिए लोग पहले तो बड़ी-बड़ी लालच देते हैं और बाद में उसे ही चाट जाते हैं। इसलिए उसने बड़े भोलेपन से कहा- “अरे, आजकल के आदमियों का भी क्या भरोसा ? पार्टी में, सफर में और यहां-वहां दिखावे के लिए चौदह कैरेट का पालिश किया सोना पहनते हैं। असली सोना तो तिजोरियों में बंद रहता है। इसलिए मैं तो पहले तुम्हारा कड़ा देखूंगा, परखूंगा, तभी कुछ करूंगा।”

लेकिर शेर भी ठहरा पुराना खिलाड़ी । वह आसानी से चक्कर में आने वाला नहीं था । राजनीति के बूढ़े खिलाड़ी की तरह मुस्कुराते हुए बोला- “हां,
शौक से देख-परख लो। लो, मैं पंजे को बाहर कर देता हूं।”

राहगीर ने सोने का कड़ा दूर से ही, किंतु ध्यान

से देखा। कड़ा असली सोने का था । राहगीर ने सोचा कि अगर मैं शेर को बाहर निकाल भी दूं तो इस बात कोई भरोसा करना व्यर्थ है कि यह कड़ा मुझे दे देगा और मुझ पर हमला नहीं करेगा। इसलिए उसने एक तरकीब सोची। उसने शेर से कहा- “ठीक है, शेर भाई, मैं तुम्हें बाहर निकाल देता हूं। लेकिन दो शर्तें हैं । एक तो यह है कि तुम सोने का कड़ा कटघरे में रखकर बाहर निकलना। दूसरी शर्त यह है कि बाहर निकलते समय तुम्हारी आंखों पर पट्टी बंधी रहनी चाहिए ।” मरता क्या न करता ।

शेर ने दोनों शर्तें मान लीं । उसने सोचा कि आंखों की पट्टी खोलने में कितनी देर लगेगी ! उतने समय में यह राहगीर आखिर कितनी दूर भाग सकेगा मेरी तो एक ही छलांग काफी होगी। बस, इसे दबोचने के बाद कड़ा वापस उठा लूंगा ।

राहगीर ने शेर को एक कपड़ा दे दिया। शेर ने सोने का कड़ा रखकर आंखों पर पट्टी बांध
राहगीर ने कहा- “मैं दरवाजा खोलकर जब कहूं ‘निकलो’, तुम निकल आना।”

फिर राहगीर ने दरवाजा खोलकर आवाज दी और फुर्ती से दूसरी ओर आ गया। शेर तेजी से बाहर आया और गुर्राकर उधर ही झपटा जिधर से राहगीर ने आवाज दी थी। पर राहगीर तो पहले से तैयार था। शेर के निकलते ही वह झपटकर कटघरे के अंदर घुस गया और दरवाजा बंद कर लिया।

शेर ने पट्टी खोली और राहगीर को कटघरे के अंदर बंद देखकर गुस्से से लाल हो उठा। वह कटघरे पर झपटा। पर सब बेकार था। उसने लगातार कई
आक्रमण किये। लेकिन राहगीर निश्चिन्त बैठा रहा। अचानक एक गोली सनसनाती हुई आयी और शेर के पेट में धंस गयी। शेर जमीन पर गिरकर छटपटाने लगा। उसने देखा कि वही गीदड़ और लोभी ब्राह्मण अपने साथ एक शिकारी लेकर आये हैं। वे दूर खड़े तड़पते हुए शेर को देख रहे थे।

कुछ ही देर में शेर ठंडा हो गया। वे तीनों सोने का कड़ा लेने के लिए कटघरे के पास आये। लेकिन यह देखकर हैरान रह गये कि सोने का कड़ा तो सबसे तगड़े शेर की मुट्ठी में था। जब दरवाजा खुला तो राहगीर मुस्कुराता हुआ बाहर निकला और चला गया।

5.खरबूजे ने रंग बदला

खरबूजे की फसल आयी । गीदड़ ने खेत में खरबूजे देखे तो मुंह में पानी आ गया। सोचने लगा- “पिछले साल ऊंट को बेवकूफ बनाया था। वह बेचारा एक भी खरबूजा नहीं खा सका था पर मैं भी क्या करता ? मेरा पेट इतना भर चुका था कि मैं खुशी से गाना गाये बिना नहीं सका। अब यह तो ऊंट की बदकिस्मती थी कि किसान जाग गये, उन्होंने उसे घेर लिया और लाठियों से उसकी पूजा कर दी।”
“तो अब इस साल किसे बेवकूफ बनाऊं ?” गीदड़ फिर सोचने लगा। “वैसे ऊंट भी मूर्ख ही तो है। पिछले साल की बात भूल चुका होगा। क्यों न चलकर उसी को पटाया जाये, वरना खेत की कांटेदार बाड़ी कौन तोड़ेगा ?”

गीदड़ ऊंट के पास पहुंचा। ऊंट उसे देखते ही पहचान गया। बोला, “आओ, दोस्त ! बहुत दिनों बाद मिले। कहां रहे इतने दिन ?” गीदड़ ने सोचा, “अब यह मुझे दोस्त कह रहा है तो इसका मतलब है कि या तो मुझे पहचाना नहीं और किसी दूसरे गीदड़ के धोखे में दोस्त कह रहा है, या फिर यह पिछले साल की घटना को भूल चुका है । वह बोला, “हां दोस्त, मैं दूर देश चला गया था।

काफी दिनों तक घूमता-फिरता रहा। फिर अचानक याद आया कि खरबूजों का मौसम आ गया है। बस, लौट आया। आज तुम्हारी याद आयी। सोचा, चलकर हाल-चाल पूछूं और अगर फुरसत हो तो रात को दोनों साथ-साथ खरबूजे खाएंगे।”

ऊंट ने गीदड़ की चालाकी समझ ली। लेकिन वह भी अनजान बना रहा। बोला, “पहले एक बात बताओ गीदड़ भाई, क्या यह सच है कि खरबूजा देखकर खरबूजा रंग बदलता है ?”
“कहावत तो ऐसी ही है।” गीदड़ ने कहा, “सच क्या है, नहीं जानता ।”

ऊंट ने मन-ही-मन सोचा, “तब आज तुझे देखकर मैं भी अपना रंग बदलूंगा और मजा चखाऊंगा।” वह बात बनाकर बोला, “ गीदड़ भाई, मैं तुम्हारे साथ जरूर चलता । लेकिन सुना है, किसान खेतों की रखवाली बड़ी मुस्तैदी से कर रहे हैं। इसलिए डर लगता है।”

गीदड़ जोर से हंसा। बोला, “यार, तुम भी रहे बुद्ध ! इसका मतलब यह हुआ कि हम खरबूजे न खायें ? यह कभी नहीं हो सकता। मेरा कहना मानो और चलो।”

उस समय आधी रात बीत रही थी। ऊंट तो गीदड़ से बदला लेना चाहता था। कुछ देर तक वह दिखावे के लिए ना करता रहा, फिर मान गया। दोनों चुपचाप खरबूजे के खेत की ओर चले ।

गीदड़ बोला, “ऊंट भाई, मुझसे भूख नहीं सही 6 जा रही है। तुम कहो तो मैं जल्दी से अपना पेट भर लूं, फिर तुम आराम से खाते रहना । तुम मेरी देखभाल करना, मैं तुम्हारा ख्याल रखूंगा।”

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“कोई बात नहीं । खरबूजा देखकर खरबूजा रंग
बदलता है। तुमने मुझे दोस्त समझा है तो दोस्त के लिए मैं भी सब कुछ कर सकता हू।” ऊट ने कहा। ऊंट ने खेत के किनारे लगी कांटों की बाड़ी हटाकर रास्ता बना दिया। गीदड़ खेत में कैद हो चुका था। अब ऊंट उधर चला, जहां किसान सो रहे थे। वह बड़ी तेजी से उनकी चारपाइयों के चक्कर लगाता हुआ खेत की ओर भागा।

किसान हैरान हो गये। लाठियां लेकर उसके पीछे-पीछे दौड़े, पर ऊंट काफी आगे निकल चुका था । गीदड़ ने भगदड़ की आवाज सुनी तो घबरा गया । वह बाहर निकलने का रास्ता ढूंढने लगा, लेकिन तब तक किसानों ने उसे देख लिया था । गीदड़ समझ गया कि ऊंट ने बदला ले लिया है। किसानों की लाठियां उस पर मौत बनकर बरसने लगीं।

कुछ देर तक बेचारा गीदड़ इधर-उधर भागा, परंतु फिर लाठियों की मार से भला कैसे बचता ! उस दिन के बाद से गीदड़ ने ऊंट से कभी दोस्ती नहीं की। गीदड़ समझ गया कि कि कैसे खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है।

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