हैलो दोस्तों आपका स्वागत है इस पोस्ट में प्यार कैसे करते हैं?आखिर प्यार में जान क्यों दे देते हैं ? प्यार से जुड़ी हर सवाल का जवाब मिलेगा। प्यार का बुखार आमतौर पर 18 वर्ष से लेकर 30-35 वर्ष तक कुछ ज्यादा रहता है उसके बाद count down (उल्टी गिनती) शुरू हो जाती है। कुछ लोग टीनएज (किशोर) अवस्था में भी प्यार में से जाते हैं। प्यार, इंसान तथा जानबरों का की मूल स्वभाव व प्रवृत्ति होती है।
कहते हैं प्यार के बिना जिंदा रहना संभव नही है। ‘प्यार’ शब्द जितना खूबसूरत लगता व मासूम लगता है यह उतना ही जहरीला व खतरनाक होता है तभी तो प्यार के खातिर लाखों लोग अपनी जान भी गँवा चुके है। But प्यार में जान गँवाने वाले लोग पागलपन के कारण अपनी जान गँवा देते हैं, जान देना ही है तो देश के लिए कुर्बान हो जाओ।
जान देना हलुआ नही है, लेकिन बेवकुफी व नादानी के कारण ऐसा कर बैठते हैं, आगे पोस्ट में और विस्तार से जानेंगे। प्यार किसी को बुलंदी तक पहुँचा देता है तो प्यार किसी का जिंदगी बद से बदतर बना देती है। हालांकी प्यार के नतीजों को हद तक जातिवादी व पुररूपप्रधान समाज बहुत नियंत्रण करते हैं
जबकि हमारे देश का संविधान पूर्ण रूप से संवैधानिक आज़ादी प्रदान करता है परन्तु यह जमीनी रूप में लागू नही हो पाता था. यूँ कहें कि – कानून के ठेकेदार इसको लागू होने नही देते।
what is love ?प्यार क्या है?
प्यार जिंदगी का खूबसूरत अहसास है, गिफ्ट है, प्यार करने वाले कभी डरते नही, बचपन का यार भूल नही जाना आदि प्यार की लाइनें बाजार में मशहूर है। गर प्यार को सही अर्थ में देखे तो हमें किसी भी इंसान व जानवर से प्यार हो सकता, या प्यार का अहसास पनप सकता है। अगर एक लाईन में मैं प्यार को परिभाषित करूँ तो- जहाँ हमें कुछ चाहिए वहाँ प्यार हो ही नही सकता” सच्चा प्यार तो वह है जहाँ हमें सामने वाले से बदले में कुछ नही चाहिए।
जैसे हमें कोई जानवर से प्यार हो जाता है तो उससे हमें कोई चाहिए होता है या नही, मम्मी-पापा से प्यार करते हैं तो क्या कुछ चाहिए होता है या नहीं।खुद से पूछे बिल्कुल नही।
बॉलीवुड की फिल्मों ने लोगों को जितना प्यार करना सिखाया है उतना शायद किसी ने नही जब से बॉलीवुड की फिल्में आयी है तब से प्यार के बाजार का साईज बहुत बढ़ा है और वर्तमान में सोशल मिडिया मोबाईल के माध्यम से प्यार एडवांस लेवल तक पहुँच गई है।
एक उम्र के बाद प्राकृतिक (नेचरल) रूप से विपरित सेक्स, लड़का, लड़कियों के प्रति व लड़कियाँ लड़कों के प्रति स्वभाविक रूप से आकर्षित होने लगते हैं। आज के समय में प्यार संयोग से वह जान बुझकर दोनों तरीकों से हो जाता है और इसलिए प्यार करते हैं कि सामने वाले से कुछ चाहिए होता है।और जहाँ कुछ चाहिए होता है वहां प्यार नहीं स्वार्थ होता है।
पहला प्यार क्यों नही भूलते ?why don’t you forget your first love?
प्यार का भूत Teenage (किशोरावस्था) यानि 13 से 19 साल के बीच शुरू होती है। दोस्तों यह उम्र बहुत ही नाजुक व कच्ची होती है इस उम्र में बच्चे कल्पना की दुनिया में जीते है मन चंचल होती है चीजों व दुनिया के बारें में समझ नही के बराबर होती है। इस अवस्था में भावना प्रबल होती है। बॉलीवुड फिल्मों से प्यार के बारे में थोड़ी सी जानकारी रहती है साथ में अपने से कुछ बड़े दोस्तों के माध्यम से प्यार शब्द से परिचीत होते हैं।
इसी समय स्कूल या आसपास के कोई गर्लफ्रेंड या बॉयफ्रेंड बन जाते हैं। क्योंकि भावना प्रबल होने के कारण ये बच्चे जल्दी ही सामने वाले पर विश्वास कर लेते हैं इसके साथ प्यार वाला हार्मोन्स हावी होने के कारण एक-दूसरे से भावनात्म बंधन में बंध जाते है और यह मासूम जिंदगी का सबसे खूबसूरत अहसास होता है,, उन्हें ऐसा महसूस होती है कि दुनिया की सारी खुशी मिल गई है और कुछ नही चाहिए।
लेकिन यह सब बहुत सालों तक नही चलती एक तो समाज का डर तो दूसरी बढ़ती उम्र के साथ समझदार बनते जाना।और आखिर में वह समय आता है कि उन्हें एक-दूसरे से अलग होना पड़ता है और यह समय वह समय होता है कि मनो सब कुछ बर्बाद हो गया है। उन्हें ऐसा लगता है कि दुनिया खत्म हो गई है।
अत: इन्सान का यह स्वभाव होता है कि पहली बार कोई चीज का स्वाद मिल जाये तो उस स्वाद को जिंदगी भर नही भूल पाते, उस पल की याद बार-बार आती है इसीलिए- कहा जाता है कि पहला प्यार को नही भूले जाते।
अब ये फिर से प्यार में पड़ते हैं तब उतना सुखद नहीं होता जितना कि पहले वाला रहता है।
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प्यार कैसे करते हैं?आखिर प्यार में जान क्यों दे देते हैं ? Why do you die for love?
हर एक इंसान अपनी एक अलग दुनिया में जीते है सबकी अपने द्वारा बनायी गयी एक अलग दुनिया होती है। और जो प्यार में रहते है वो एक-दूसरे को ही अपना दुनिया समझ लेते हैं, उन दोनों की हर पल की यादें उनके मन मस्तिष्क में रहती है। उन्हें ऐसा लगता है यही जिंदगी है, ये नही मिला तो जिंदगी कुछ भी नही। जैसे बॉलीवुड की फिल्में भी यही सिखाता कि जिसे हम प्यार करते हैं वो हर हाल में मिलना चाहिए चाहे उसके लिए कुछ भी करना पड़े।
और किसी कारणवश जब वें एक-दूसरे के नही हो पाते हैं तब वे अपना जान देना ही उचित समझते हैं और अपनी जिंदगी समाप्त कर लेते है लेकिन यह बहुत बड़ी नादानी होती है उन्हें जिंदगी की कोई समझ नही होती। यही पर माँ-बाप का प्रमुख दायित्व होता है कि वे अपने बच्चे को गतिविधियों पर नजर रखें। अगर माँ बाप बच्चे के प्रति सजग सजग रहें तो जन बचाई जा सकती है
माँबाप को बच्चों से दोस्ताना व्यवहार बनाने का प्रयास करना चाहिए ताकि वे अपने साथ हो रहे हर बात को शेयर करे ताकि ऐसे अनहोनी घटना से बचा जा सके हर बड़ी घटना आने से पहले संकेत देती है, उस संकेत को ही हमें समझने की जरूरत पड़ती है।
क्या प्यार ही सब कुछ है?
बिल्कुल नही प्यार के सहारे जिंदगी नही चलती (प्यार से रोटी नही मिलती उसके लिए मेहनत करनी ही पड़ती है। प्यार एक आकर्षण का नाम है जो मिल जाने के बाद धीरे धीरे समाप्त होने लगती है सच्चा प्यार में कोई चाहत नही होती वे एक दूसरे में खुद को महसूस करते है। लोगों को प्यार कहाँ मिलता है? लोगों को प्यार इंसान से व प्रकृतिद्वारा निर्मित तत्व पेड़-पौधे, नदी-पहाउ फूल-फल बादल, बारिश सभी से मिलती है। या हमें प्यार का अहसास होता है।
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