बच्चों में आजकल चुड़ैल से रिलेटेड कहानी का एक प्रकार से क्रेज सा हो गया है ,सो इसीलिए दोस्तों आज मैं एक मजेदार कहानी लेकर आया हूँ जिसका शीर्षक है -चुड़ैल की कहानी, पायल वाली चुड़ैल का आवाज chudail ki kahani
चुड़ैल की कहानी,chudail ki kahani
गर्मियों की छुट्टियाँ आ गयी थी, स्कूल, कालेज बन्द हो चुके थे, मैं अपने गाँव खैराही काफी दिनों के बाद पहुँचा था, सभी बहुत खुश थे, मैं भी खुश था। पन्नू, गोलू, छोटू, रमेश, पलटू, कलुवा सभी मुझे घेरे थे। उन सबसे गाँव का हालचाल पूँछ रहा था सभी बड़ी ही आत्मीयता से घर, खेत-खलिहान व बाग-बगीचों की बातें कर रहे थे, तभी कलुआ ने एक ऐसी घटना बताई की मैं आश्चर्य चकित रह गया…। सभी ने कलुआ के हाँ में हाँ मिलाई। मैं भी कुछ क्षण के लिये भयभीत हो गया लेकिन भय मैं अपने अन्दर ही छुपा गया।
शाम ढल चुकी थी सब जा चुके थे कुछ आम की टिकोरियाँ लिये मैं भी घर आ चुका था, लेकिन रास्ते भर मुझे कलुआ द्वारा बताई गयी बातें मन में मथती रही…। पहुँचते ही बारामदे में बाबा बैठे थे… देखते ही बोले आ गये बेटा, गाँव का भ्रमण करके…। मैंने कहा हाँ
बाबा मेरे संक्षिप्त उत्तर से बाबा सन्तुष्ट नहीं हुए और मुझे अपने करीब आने को कहा..।
मैं उनकी बगल में चारपायी पर बैठ गया और जेब से अमियों को निकालने लगा…। बाबा मुस्कुराते हुए बाले अच्छा तो तू बगिया गया था…किसके साथ गया था रे… मैने कहा अपने दोस्तों के साथ…। मैं घर के भीतर जाने का उपक्रम करने लगा…। बाबा को शायद अच्छा नहीं लगा… बोले बैठ तो सही… कुछ हमसे भी तो बात कर ले… बड़ा चुपचाप है आज… किसी ने डाटा क्या…? मैंने सिर हिलाते हुये कहा नहीं… मेरा मन बार-बार कलुआ की बताई गयी बातों पर केन्द्रित हो रहा था, मैंने लगभग चुप्पी तोड़ते हुए बाबा से पूछा…। बाबा… क्या भूत, प्रेत, चुडैल भी होते हैं…? बाबा मेरी तरफ आँखे फाड़ कर देखने लगे… मैं सहम गया…।
लेकिन हिम्मत करके फिर पूछा… तो इधर उधर की बातें करने लगे, लेकिन मैं अपनी बातों पर अड़ा रहा…। बार-बार पूछता रहा तब उन्होंने कहा… ये सब क्यों पूछ रहा है… मैंने कलुआ की सारी बातें बताई और बाबा से पूछा क्या ये सच है? उन्होंने भी सिर हिलाते हुये कहा हाँ…। तभी बाबा के कुछ गाँव के मित्र आ गये और वो
सब अपनी बातों में मशगूल हो गये।
खाना खाकर लेट चुका था, अम्मा लालटेन को धीरे कर रही थी, दादी सुपाड़ी कतर रही थी तभी गाँव के एक कोने से “बचाओ-बचाओ के आवाजे आने लगी. सभी लोग उस आवाज को सुनकर भयमिश्रित आँखों से एक दूसरे को देखने लगे. मैं भी उठ कर बैठ गया था। माँ ने मेरी ओर देखा और कहा सो जाओ। मैंने कहा नींद नहीं आ रही है और मैं उठ कर दालान में चला गया वहाँ देखा कुछ लोग बाबा के पास बैठकर कलुआ वाली बात को बता रहे थे।
मजेदार चुड़ैल की कहानी, पायल वाली चुड़ैल का आवाज chudail ki kahani
मैं भी वहीं बैठ गया और सबकी बातें सुनने लगा, तभी अंगनू कन्धे पर लाठी लिये वहाँ पहुँचा सब उसकी ओर देखने लगे और उससे उस शोर के बारे में पूछा…का भवा. अंगनू ने बताया… अरे रघुवा के घरे रसूलवा झाड़ फूंक कर रहा है… उसी की चिल्लाहट है। सभी आश्वस्त हो गये। चाँदनी रात थी, पुरवइया की हवा में मुझे कब नींद आ गयी मुझे पता ही नहीं चला…।
सुबह मैंने पता किया, रघुवा के यहाँ घर के अन्दर ऊपर एक कमरा था, और रात होते ही उस कमरे से घुंघरू की आवाज आने लगती थी। और लोग डर के
मारे घर के बाहर भागने लगते थे, अक्सर रघुवा का परिवार उस घर में नहीं जाता था, उनका विश्वास था कि इस घर में चुडैल का वास है और गाँव के लोग भी उधर जाने से कतराते थे। रघुवा के घर रोज ओझा, तान्त्रिक आते रहते थे। दो चार दिन सब ठीक-ठाक रहता था, लेकिन कुछ दिनों के पश्चात फिर वही आवाज…। सभी लोग भयभीत थे, कोई किसी से कुछ नहीं कहता…। धीरे-धीरे यह बात और गाँवों तक पहुँच चुकी थी।
दूसरे दिन मैं सोकर उठा दैनिक क्रिया से निवृत्तहोकर मैं सीधे अपने दोस्तों के पास गया और मैंने रघुवा के घर जाने की बात कही, मैं देखना चाहता था ये सब कैसे हो रहा है, लेकिन किसी की हिम्मत रघुवा के यहाँ जाने की नहीं हुई, लेकिन रमेश ने हाँमी भरी मैं चलूँगा…। वैसे भी रमेश से हमारी गहरी दोस्ती थी और रमेश हर पल हमारे साथ रहता था।
दोपहर का समय था चारों तरफ गरम हवायें भाँय- भाँय कर रही थी, हम लोग घर से चुपके से निकले और सीधे रघुवा के घर पहुँच गये…। रघुवा के घर पर कोई नहीं था परिवार के सब लोग आम की बगिया में डेरा डाले थे लेकिन तभी संजोग से रघुवा का बड़ा लड़का दिखाई पड़ गया वह रस्सी लेने आया था। हम लोगों ने उससे अपने आने का प्रयोजन बताया, और कहा- तुम मुझे उस कमरे में ले जा सकते हो जिस कमरे में चुडैल की पायल बोलती है… ?1 पहले तो वह डरा सकपकाया, हम लोगों ने उसे काफी समझाया भूत चुडैल कुछ नहीं होता, तुम बेवजह डर रहे हो किसी तरह हम लोगों ने मान मनौव्वल करके उसके साथ उस कमरे की ओर बढ़ चले जिसमे से घुंघरु की आवाज आती थी।
कमरे में काफी अंधेरा था काफी कूड़ा-कबाड़ भरा था— तभी रमेश बोला- मैं तुरन्त घर से टार्च लेकर आ रहा हूँ तुम लोग तबसे बरामदे में बैठो। और हम लोग बरामदे में बैठ गये और रमेश टार्च लेने अपने घर चला गया, लेकिन तुरन्त पाँच मिनट के भीतर आ गया। हम तीनों लोग उस कमरे में फिर पहुँचे और टार्च की रोशनी में पूरे कमरे का गहराई से निरीक्षण किया, वहाँ ऐसी कोई भी संदिग्ध चीज न नजर आयी, और ना ही कोई निशान आदि ही मिले जिससे यह आभास हो कि यहाँ कुछ है या होता है।
अचानक रमेश की निगाह ऊपर एक धन्नी के कोने में गयी वहाँ उसे कोई चमकती हुई चीज नजर आयी, रमेश ने चुपके से धन्नी की ओर इशारा करते हुए कान में मुझसे कुछ कहा, मैं आश्चर्य चकित रह गया, और उस बिल की तरफ एकटक देखने लगा, मैंने रमेश से कहा एक लम्बा बाँस का डन्डा ले आओ-रमेश ने तुरन्त वहीं पड़े हुए एक बाँस के टुकड़े को कबाड़ निकाला लेकिन छोटा था। लेकिन फिर भी किसी तरह हम लोगों ने चढ़ने का प्रबन्ध कर लिया कि बाँस वहाँ बिल तक पहुँच जाय। और वह बाँस लेकर हम टूटे फूटे पलंग आदि पर चढ़कर टार्च की रोशनी में उस चमकदार वस्तु को निकालने लगे तभी उस बिल में बैठी हुई कोई चिड़िया भर्र ऽऽऽ से बहुत जोर से फड़फड़ाती निकली और कमरे के किसी कोने में फिर बैठ गयी, लेकिन यह क्या…? चिड़िया के बिल से निकलते ही घुंघरू की जोरदार झनझनाहट हुई और शान्त हो गयी, अचानक, चिड़िया के इस प्रकार निकलने से हम डर के मारे गिरते-गिरते बचे रमेश जोर से चिल्ला पड़ा…। रघुवा का लड़का गिरते पड़ते चिल्लाते हुए भागा… अरे बाप रे 55 चुडैलिया निकली बा…।
ऐसा कहते हुए वह बाहर भाग
गया—और डर के मारे थर-थर काँपने लगा- हम लोग भी एकाएक डर गये…। थोड़ी देर में अंततः हम लोग संयमित हुये और किसी तरह उस घुंघरू को बिल से निकाल लिया, और उतर गये।
इधर रघुवा का लड़का भागा तो पलट कर नहीं आया और पूरे गाँव में शोर मचा दिया रमेश और चमन चुडैलिया का घुंघरू पाये गयेन जिसने भी ऐसा सुना वह रघुवा के घर की ओर भागा देखते ही देखते रघुवा के घर के सामने काफी लोग जमा हो गये लेकिन सबके चेहरे से भय परिलक्षित हो रहा था…। हम लोग रघुवा के घर से बाहर दालान में आ चुके थे…तब तक रघुवा भी परिवार समेत वहाँ आ गया…।
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हमने सबके सामने घुंघरू दिखाते हुए समझाया. देखिये…ये चुडैल का घुंघरू नहीं है…इसे तो कहीं से खरपतवार के साथ चिड़िया अपने घोसले में ले आयी रही होगी, देखो देखो इसमें डोरा भी बँधा हुआ है हुआ यह होगा कि चिड़िया ने इसे अपने बिल में रखा होगा और उसके बैठने या उठने से यह झुनझुना जाता होगा और आप लोग समझे इस घर में चुडैल आ गयी है…। चमन ने रमेश की ओर देखते हुए कहा- ऐसा है
हम लोग एक सप्ताह तक इसी घर में रहेंगे, तब देखेंगे चुडैल कैसे घुंघरू बजाती है…। आप लोग डरे नहीं…। हम लोगों को कुछ नहीं होगा।
कुछ दिनों के बाद रघुवा अपने परिवार सहित फिर से अपने घर वापस आ गया था। सभी लोग हम लोगों के साहस और बुद्धिमानी की तारीफ करते नहीं अघा रहे थे। सब यही कहते थे ओझा तांत्रिक के चक्कर में रघुवा बर्बाद हो गया….लेकिन कुछ दिनों पश्चात् रसूलवा ओझा वहाँ पहुँचा… पहले तो उसने सबको भयभीत कर दिया… और कहा—अरे गाँववालों अब देखना इन दोनों लड़कों को चुडैल नहीं छोड़ेगी… वह अपना घुंघरू लेने जरूर आयेगी, उसके आने पर गाँव में विपत्तियों का पहाड़ टूट जायेगा… मेरी मानो तो इस घुंघरू को वहीं रख दो नहीं तो सत्यानाश हो जायेगा…इन लड़कों की वजह से सारा गाँव तबाह हो जायेगा… इन लड़कों को यहाँ गाँव में रहना ठीक नहीं है…।
रमेश ने जब ओझा के मुँह से ये बाते सुनीं तो वह आग बबूला हो गया और ओझा को उसने तीन चार चाँटे जड़ कर वहाँ से भगा दिया…कुछ गाँव के शरारती लड़कों ने तो उसे लाठी लेकर दौड़ा लिया बेचारा ओझा सिर पर पैर रख कर भाग खड़ा हुआ।
तो मेरे मित्रों ये है अन्धविश्वास किस तरह से सीधे सादे लोगों को ये ओझा, गुनिया, तांत्रिक लोग अपने चंगुल में फँसा लेते हैं, और अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं।
आज भी चमन और रमेश की लोग बहुत तारीफ करते हैं, और बर्बाद होने से रघुवा बच गया।