आसमान में कितने तारे हैं?तारे क्यों टिमटिमाते हैं?

आसमान में कितने तारे हैं?तारे क्यों टिमटिमाते हैं?

दोस्तों आज हम आपको आकाश में चमकने वाले तारों के विषय में जानकारी शेयर करेंगे। लोग अक्सर पूछते हैं या सर्च करते हैं कि-आसमान में कितने तारे हैं?तारे क्यों टिमटिमाते हैं? फ्रेंड्स हमें आकाश में तारे बहुत छोटे दिखाई पड़ते हैं। परन्तु सुबह होने पर जब सूर्य निकलता है तब यह तारे हमारी आँखों से ओझल हो जाते हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि यह तारे पृथ्वी से बहुत दूरी पर हैं।

यह तारे भी सूर्य के समान आग के गोले हमारी पृथ्वी के जो सबसे अधिक निकट का तारा है वह भी लगभग पच्चीस अरब मील की दूरी पर है। इस दूरी को प्रकाश की चाल से मापा जाता है। प्रकाश एक सैकिण्ड में एक लाख छियासी हजार मील तक जाता है। प्रकाश को हमारे सबसे निकट के तारे से पृथ्वी तक आने में चार वर्ष से भी अधिक समय लगता है।

 आखिरआसमान में कितने तारे हैं?

आकाश में यह तारे असंख्य है। अंधेरी रात में आकाश में देखने पर हमें अनेकों तारे दिखाई देते हैं। तारों की सबसे पहली सूची यूनान के बहुत प्रसिद्ध खगोलशास्त्री हिप्पेनस ने ईस्वी सन् से सौ वर्ष पूर्व बनाई थी। उसने इन तारों की छः श्रेणियाँ बनाई और उनके अलग-अलग नाम रखे। दूसरे वैज्ञानिक गैली- लियो ने अपनी दूरबीन की सहायता से कुछ और तारों की खोज की। केलीफोर्निया की प्रयोगशाला में इन तारों के चित्र लिए गये। इनकी संख्या के विषय में अभी तक निश्चित रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता। आकाश में हमें अरबों तारे दिखाई देते हैं। इनके अतिरिक्त न जाने और कितने तारे ऐसे हैं, जिनका प्रकाश पृथ्वी पर नहीं आ पाया है। इनकी संख्या भी बहुत अधिक है।

तारे क्यों टिमटिमाते हैं?

वैसे आसमान में टिमटिमाते ‘तारों को देखना मन को खुशनुमा सुकुन दे जाती। परन्तु मनमें सहज रूप से एक प्रश्न उठती है कि आखिर ये तारे क्यों टिमटिमाते हैं ? क्या यह तारे जुगजुगी बल्ब की तरह इनकी रोशनी कम ज्यादा होती रहती है? जवाब है नही, तारें प्राकृतिक रूप से हजारों वर्षों से चमकते आ रही है।

वास्तव में तारों से निकल रहे रोशनी को हमारी आँखो तक पहुँचने के लिए वायुमंडल में विद्यमान विभिन्न अवरोधों का सामना करना पड़ता है, जिसके कारण उनकी रोशनी विचलित होते रहती है।वायुमंडल में हवा की चलती हुई परतें, तारों से आ रही रोशनी के रास्ते को बदलती  रहती है जिसके कारण तारें कभी छुपता हुआ, चमकता हुआ दिखाई देता है जिसके कारण तारें टिमटिमाते हुए दिखाई देता है l

पृथ्वी से तारों की दुरी कितनी है ?

खगोलशास्त्रियों द्वारा सूर्य और सूर्य के ग्रहों की दूरी का अनुमान लगाया जा चुका है, परन्तु इन तारों की दूरी का अनुमान लगाना कठिन है। फिर भी आधुनिक यन्त्रों की सहायता से इनकी दूरी का अनुमान लगाया गया है। खगोलशास्त्री वस्सेलन ने स्नान तारे की दूरी पृथ्वी से लगभग एक करोड़ पचास मील मापी थी। कुछ अन्य खगोलशास्त्रियों ने इससे भी दूर के कुछ तारों की दूरी मापने का प्रयास किया था। इतना सब कुछ होने पर भी इसके विषय में लगातार खोज की जा रही है।

यह तारे पृथ्वी से हजारों मील की दूरी पर हैं। इसलिए इन तारों की गर्मी का हम अनुमान नहीं लगा पाते। इनकी गर्मी पृथ्वी तक नहीं पहुँच पाती। एल्फा सेण्टोरी नामक तारा सूर्य की तरह ही आग का गोला है। इस तारे का रंग, तापमान और प्रकाश ठीक वैसा ही है जैसा कि सूर्य का है।

आकाश गंगा के पास चार तारे हैं। इनमें तीन तारे समान दूरी पर हैं और चौथा कुछ अधिक दूरी पर है। इनमें से पहले तीन तारों के समूहों को मृगशिरा (हिरणी ) और चौथे तारे को लुब्धक (कुत्ता) कहते हैं। ये लुब्धक तारा पृथ्वी के अधिक निकट है। इसलिए यह अधिक चमकदार हैं। यह तारा सूर्य से आकार में बहुत छोटा है। इसमें सूर्य से तीस गुना अधिक प्रकाश व यह सूर्य से चमकदार है।

तारों का तापमान

आकाश में जिन तारों का प्रकाश नीलापन लिये होता है, उनका तापमान अधिक होता है। इनमें से हुए हर तारा सूर्य से अधिक गर्म है। इनमें बहुत से तारे तो सूर्य से दस-दस हजार गुना गर्म हैं। जो तारे लाल हैं. वो नीले तारों से भी अधिक गर्म हैं। इनमें से कुछ तारे सूर्य से कम गर्म हैं।

कुछ तारे बहुत बड़े और कुछ बहुत छोटे हैं। छोटे तारे ग्रहों के समान हैं। इन्हें दूरबीन से साफ देखा जा सकता है। इन तारों का भार भी सूर्य के भार हजारों गुना अधिक है।

यह तारे हाइड्रोजन खर्च करते हैं। छोटे तारे कम हाइड्रोजन खर्च करते हैं और बड़े तारे अधिक। सूर्य की अपेक्षा तारे बहुत अधिक हाइड्रोजन खर्च करते हैं। सूर्य से दो गुना तारा उससे बारह गुना हाइड्रोजन खर्च करता हैं। सूर्य से दस गुना तारा उससे हजार गुना हाइड्रोजन खर्च करता हैं। अपने में चमक व प्रकाश बनाए रखने के लिए यह तारे सिकुड़ जाते हैं।

तारों की गति

आकाश में जिस मार्ग पर यह तारे चलते हैं, उसी मार्ग पर और भी बहुत से तारे चलते हैं। ये तारे आकाश-गंगा के अंग है। इनमें से कुछ तो पृथ्वी के साथ घूमते हैं और कुछ पृथ्वी के मार्ग को काटते हुए घूमते हैं। इनका संचालन आकाश गंगा के क्रम के अनुसार होता है।तारों की चाल समान भी नहीं है। ये दस हज़ार मील प्रति घण्टा से एक लाख मील प्रति घण्टा की चाल से चलते हैं। सूर्य कई तारों को पीछे छोड़कर ड आगे निकल जाता है।

पृथ्वी राजहंस – नक्षत्र समूह की और चालीस हजार मील प्रति घण्टा की चाल से रही है। इन दोनों के बीच में पाँच अरव मील का अन्तर है। इसलिए इन दोनों की आपस में टक्कर नहीं हो सकती। ये तारे आपस में इतनी दूरी पर हैं कि इनकी आपस में टकराने की सम्भावना नहीं है। यदि यह दूरी कम होती तो हर समय टकराने की सम्भावना बनी रहती। बढ़

कभी-कभी ध्यान से देखने पर पता चलता है कि जिसे हम एक तारा समझते हैं वह एक नहीं, दो होते हैं। यह बात दूरबीन से देखने पर ज्ञात हो पाती है। अन्यथा इसका पता चलना असम्भव है। दूर से देखने पर कभी-कभी ऐसा लगने लगता है कि कहीं ये तारे जोड़ों में टकरा न जायें, लेकिन ऐसा होता कभी नहीं है। ये तारे जोड़ों में रहते हैं और जोड़ों में ही चलते हैं।

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