आकाश गंगा किसे कहते हैं ?aakash ganga kise kahte hain ?

आकाश गंगा किसे कहते हैं ?aakash ganga kise kahte hain ?

आकाशसंसार में जो घटनाएँ आज तक घटी हैं, उन्हें हम उनकी कहानियों के रूप में याद रखते हैं। हमारी इस दुनिया की उत्पत्ति भी ऐसी ही घटना है, जो कहानियों के रूप में सुरक्षित है।हमारी यह दुनिया कब बनी ? कैसे बनी? और अपने इस वर्तमान रूप में आने में इसे कितना समय लगा? इसकी एक दिलचस्प कहानी है। जरा उस समय की घटनाओं के विषय में सोचिये जब मनुष्य, जीव-जन्तु, कीड़े-मकोड़े, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, नदियाँ, पर्वत, पृथ्वी और समुद्र कुछ भी नहीं था। तब क्या था संसार में उस समय ? यह प्रश्न पैदा होता है।

उस समय एक बहुत बड़ा आग का गोला था, जो बहुत तेज़ रफ्तार से आकाश में घूम रहा था। उसकी लपटें सारे वायु-मण्डल में छाई हुई थीं। यह सारा ब्रह्माण्ड एक बहुत बड़ी भट्टी आग की तरह जल रहा था। करोड़ों वर्ष तक वह आग का गोला इसी प्रकार आकाश में घूमता रहा। उस गोले का तापमान करोड़ों डिग्री फैरनहाइट था ।

धीरे-धीरे वह आग का गोला ठण्डा पड़ने लगा और उसकी रफ़्तार भी कम होती गई। तापमान और रफ़्तार में कम होने पर उस आग के गोले के तत्व, (प्रोटोन, इलक्ट्रोन, न्यूट्रोन इत्यादि) जिनसे वह बना हुआ था, परमाणुओं में बदलने लगे।

इस परिवर्तन से बहुत नये तत्व बने और फिर उन परमाणुओं में आपसी खिचाव के कारण और बहुत से प्रकृति के तत्वों ने रूप धारण किया। धीरे-धीरे वह आग का गोला उन तत्वों के नीचे दब गया और उनके ऊपर गैस के बड़े-बड़े बादल मंडराने लगे। ये गैस के बादल उस आग के गोले से आगे बढ़कर सारे आकाश में भर गए।

लगभग चार अरब वर्ष पश्चात् एक दिन उस आग के गोले में भयंकर विस्फोट हुआ। गोले के अन्दर की गर्मी ने ऊपर की सतह के धरातल को छिन्न-भिन्न कर दिया। वह विस्फोट इतना भयंकर हुआ कि उसमें उस आग के गोले का नामो-निशान ही मिट गया। वह गोला खील-खील होकर आकाश में बिखर गया।

उस आग के गोले की आकाश में बिखरने वाली खीलों ने तारों का नाम लिया। यह तारे एक दूसरे की ओर आकर्षित होने लगे और इन्होंने आकाश-गंगाओं का रूप धारण कर लिया।

अंधेरी रात में हमें अपने सिर के ऊपर एक तारों की नदी-सी दिखाई देती है। यह हमारी आकाश-गंगा है। जब तक खगोलशास्त्रियों को इसके विषय में जानकारी नहीं थी, तब तक अनेकों भ्रान्तियाँ थीं। कुछ लोग कहते थे कि इस रास्ते पर मुर्दे अपने सिरों पर पानी के घड़े लेकर चलते हैं। इस भय से कि कहीं किसी मुर्दे का पानी से भरा घड़ा सिर पर न गिर जाए, कुछ लोग तो अपनी चारपाई ऐसी जगह बिछाते थे, जहाँ से आकाश-गंगा दिखाई न दे और वह आराम की नींद में सो सकें।

संसार के सभी लोगों के मन से इन भ्रान्तियों को आज के खगोल-शास्त्रियों ने दूर कर दिया है। आज के लोग मुर्दों की बात न सोचकर आकाश में चमकने वाले तारों के बारे में सोचते हैं।

 आकाश गंगा की दुरी,संख्या व आकृति

हमारी आकाश गंगा हमसे कितनी दूर है, इसका अनुमान आसानी से नहीं लगाया जा सकता। हमारी आकाश गंगा भूत-तल से लगभग एक लाख प्रकाश-वर्ष मील से भी अधिक दूर है। आज माना जाता है कि यह पृथ्वी से लगभग तीस हजार प्रकाश-वर्ष मील की दूरी पर है।

आकाश गंगा में तारों के झुण्डों के अलावा धूल और गैस भी मिली हुई है। हमारी आकाश-गंगा में दस हजार करोड़ से भी अधिक तारे हैं। अधिक तारों वाला भाग चमकदार और मोटा है। वैज्ञानिकों ने अब तक जिन तारों की खोज की है, वे सब इसी आकाश गंगा के तारे हैं। हमारा सबसे चमकदार तारा सूर्य भी इसी आकाश गंगा का तारा हैं।

आकाश गंगा का तो आकार इतना विशाल है कि वैज्ञानिक इसका लगभग सौवाँ भाग ही एक बार में देख पाते हैं। आकाश गंगा के ऊपर से उड़ने वाले बादल वैज्ञानिकों के काम में रुकावट पैदा करते हैं। इन धूले भरे बादलों के बीच में जो छेद दिखाई देते हैं केवल उन्हीं के बीच में से ही वैज्ञानिक आकाश को देख पाते हैं।

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हमारी आकाश गंगा के अणु-अणु में गति है। इसके अन्दर तारे ही नहीं अपितु सारी आकाश गंगा गतिवान है। जिस प्रकार सूर्य के ग्रह सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाते हैं, उसी प्रकार सूर्य अपने ग्रहों के साथ आकाश गंगा का चक्कर लगाता है। यह आकाश- गंगा इतनी बड़ी है कि अरबों वर्षों में सूर्य इसके केवल बीस चक्कर ही लगा पाया है।

एक फ्रांसीसी वैज्ञानिक ने देवयानी- तारा मंडल की सूची तैयार करते समय उनके बीच में एक दूसरी आकाश गंगा देखी। वह आकाश गंगा लगभग लाख प्रकाश-वर्ष मील की दूरी पर थी। उस फ्रांसीसी वैज्ञानिक को धूमकेतुओं की खोज करते समय अचानक ही वह आकाश-गंगा दिखाई दे गई।

इस तरह की बीस अन्य आकाश गंगाएँ पहलेखोजी जा चुकी थीं। यह आकाश गंगा इक्कीसवीं थी।यह अण्डाकार रूप में थी। इसकी भुजाएँ हमारी आकाश-गंगा की तरह सीधी न होकर कुण्डलाकारथीं। अन्य आकाश-गंगाओं के समान यह भी धूल,गैस और सितारों की बनी हुई थी। इसके सितारे नीले व चमकदार थे।

आकाशगंगाओं की खोज की दिशा में वैज्ञानिक उसके बाद भी बराबर कार्य रहे। मैस्सियर की खोजों के परिणामस्वरूप सैकड़ों आकाशगंगाओं का भी पता चला। वर्तमान दूरबीनों ने इन आकाश-गंगाओं की संख्या में और वृद्धि की है। अब वैज्ञानिकों का मत है ऐसी सैकड़ों आकाश गंगाएँ हैं। इनकी दूरी भी सैकड़ों-करोड़ों प्रकाश वर्ष मील है।

इन आकाशगंगाओं को यदि हम नगरों के रूप में मान लें तो इसके अन्दर चमकने वाले तारों के गुच्छे उन नगरों में बसने वाले परिवारों के समान हैं। इन सब तारों में प्रकाश, गति और आकर्षण है। इसी आकर्षण- शक्ति से यह सभी सितारे ठहरे हुए हैं। यदि इनमें यह आकर्षण शक्ति न हो तो यह सभी सितारे एक दूसरे से टकरा जाएँ

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